Monday, November 26, 2012

Interview of Poet, filmmaker and Oscar winner author Gulzar

Poet, filmmaker and author Gulzar has been widely acclaimed for his art, winning an Oscar in 2009 following several honours within India. In a ceremony this week, Gulzar will receive the Indira Gandhi Award for National Integration. Speaking with Humra Quraishi , Gulzar discussed his inspirations, how he fell in love with literature, why writing is like riding a tiger — and how cinema today resembles fast food:

You've been acclaimed for your creativity across different quarters — what is your current focus?

I want to only — and only — focus on my writing. There are several books in my head and i want to complete them. I've been translating Rabindranath Tagore for children recently. I find writing for children absolutely enriching and fulfilling and i want to concentrate on this. Let me just add here that i think today we are

अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरो देहलवी की रचना

अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरो देहलवी ने तो अपनी निम्न रचना में एक पंक्ति फारसी और दूसरी पंक्ति हिन्दी की लिखकर एक अनूठा प्रयोग  कर डाला  ग़ज़ल का रदीफ़ फ़ारसी में है और क़ाफ़िया हिन्दवी में.

ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल
दुराये नैना बनाये बतियाँ
कि ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ
न लेहु काहे लगाये छतियाँ
चूँ शम्म-ए-सोज़ाँ, चूँ ज़र्रा हैराँ
हमेशा गिरियाँ, ब-इश्क़ आँ माह
न नींद नैना, न अंग चैना
न आप ही आवें, न भेजें पतियाँ
यकायक अज़ दिल ब-सद फ़रेबम
बवुर्द-ए-चशमश क़रार-ओ-तस्कीं
किसे पड़ी है जो जा सुनाये
प्यारे पी को हमारी बतियाँ
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़
वरोज़-ए-वसलश चूँ उम्र कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ


आप की सहूलियत के लिए इसका अनुवाद भी किये दे रही  हूं:

पगड़ी

हरभजन सिंह बेचैन थे। उनकी बेचैनी उनके कमरे की दीवारों को भेदती हुई पूरे घर में पसर रही थी। यहाँ तक नीचे रसोई में काम कर रही उनकी बहू गुरप्रीत भी उसे महसूस कर सकती थी। गुरप्रीत भी सुबह से सोच रही थी कि ऐसी कौन सी बात है जो कि दारजी को इतना परेशान कर रही है और वह उसे कह नहीं पा रहे हैं। घर में भी तो कुछ ऐसा नहीं घटा जो दारजी को बुरा लगा हो। वैसे भी उनकी आदत तो इतनी अच्छी है कि कोई भी ऊँची-नीची बात हो जाए तो वह बड़ी सहजता से उसे एक तरफ़ कर देते हैं और अपने परिवार की शान्ति में कोई अन्तर नहीं आने देते। आज तो अभी तक नाश्ता करने के लिए भी नीचे नहीं आए, सुबह के दस होने को थे। आमतौर पर तो वह स्वयं, बेटे निर्मल के काम पर जाने के तुरंत बाद नीचे आ कर रसोई में खुद चाय बनाने लगते हैं। कोई दूसरा उनका काम करे उन्हें अच्छा नहीं लगता। लेकिन आज... कहीं तबीयत तो ढीली नहीं उनकी। कल शाम को जब वह बचन अंकल से मिल कर लौटे थे तो कुछ चुप से थे। कहीं उनके साथ तो कुछ कहा-सुनी तो नहीं हो गई? पर...

फोटो का सच

-जब वे सरकारी दफ़्तर पहुँचे, वे हाँफ रहे थे। वह दफ़्तर बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर था। वे कुछ दिनों से कई बार यहाँ आते रहे हैं। वे बड़ी मुश्किल से सीढ़ियाँ चढ़कर इस दफतर तक पहुँच पाते हैं। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए, उन्हें एकाद दो बार थकावट भरा चक्कर सा आ जाता है। ऐसे में वे अपनी छड़ी किनारे टिकाकर, किसी कुर्सी पर बैठ जाते हैं। दफ़्तर के हर मंजिल पर प्रतीक्षार्थियों के लिए कुछ कुर्सियाँ रखी हैं। जहाँ बैठकर उन्हें सुस्ताना पड़ता है। पर तीसरी मंजिल तक पहुँचते पहुँचते वे थककर चूर हो जाते हैं। उन्हें अपने दिल की धड़कन कान में बजती सुनाई देती है। पूरे कपड़़े पसीने से भीग जाते हैं और एक बार जो छाती की धौंकनी चलनी चालू होती है, वह फिर घण्टों तक बंद नहीं होती।
तीसरी मंजिल पर पहुँचकर वे उस कमरे तक पहुँचते हैं। वे पिछले छह माह में कई बार यहाँ आ चुके हैं। उस कमरे के बाहर पड़ी बैंच पर वे थोड़ा देर

फिर आना!

पतले शीशों की ऐनक में शाम का सूरज ढल रहा था। संध्या की लालिमा में घुल कर उसका साँवला चेहरा ताम्बई होने लगा। कस कर बनाए गए जूड़े से निकल कर बालों की एक लट हवा से शरारतें कर रही थी। अपनी देह पर घटते इन परिवर्तनों के प्रति निर्विकार-सी बनी वह पार्क की बेंच के सहारे मूर्तिवत टिकी हुई थी।
बरसों बाद की मुलाकात का कोई उछाह उसके चेहरे पर दर्ज नहीं हो पाया। आठ सालों बाद अचानक वह मुझे इस पार्क में मिली और पिछले चालीस मिनटों से हम साथ है। इस दौरान उसने मुझे सिर्फ पहचाना भर है। यह उसकी बहुत पुरानी आदत है, जान कर भी अनजान बने रहना।
'अब चलें?' उसके होठों से झरने वाली किसी शब्द की प्रतीक्षा में खुद को अधीर पाकर मैंने कहा। अपने से बातें करते रहने की उसकी यह अदा कभी मुझे बहुत रिझाती थी। आज सालों बाद यही अदा झेल पाना कितना मुश्किल लग रहा है।
'हूँ', चिहुँक कर उसने आँखें खोली-'तुमने कुछ कहा मनु?' आँखें बंद किए-किए वह जाने किन रास्तों पर निकल पड़ी थी। जी चाहा कि उससे पूछू कि इन अंधी यात्राओं से मैंने पहले भी कभी तुम्हें लौटा लाना चाहा था तब तुमने मेरी पुकार को क्यों अनसुना किया। मन हुआ कि उससे पिछले आठ

Punjabi Sikh Wedding De Riti-Riwaz


VIAH TON PAHLAN :(Before Marriage In Punjab) 

Bhocha torna : Viah di sab ton pahli rasam shuru hoyee bhocha toran ton. Bhocha torna means ladki di family formally ladke di family nu viah te invite kardi hai.... jisda matlab hunda hai ki aj ton hun tusi vi viah diyan sariyan tyaariyan shuru kar deyo.Bhoche vich ladke de ghar gandh chithi(formal inviation), a lot of dry fruits,mishri, vichole vicholan de kapde, mithaeee etc. bhejeya janda hai.

Daaj de kapde bnana : bhocha toran ton baad viah diya baaki tyariyan shuru ho jandiyan ne.Us ton baad ghar de saare jee ikatthe